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प्रकाशकीय वक्तव्य
पिछले दस वर्षोमें माताजी एक शिष्यके साथ अपनी कुछ अनुभूतियोंके बारेमें बातचीत किया करती थीं । यह बातचीत फ्रेंचमें हुई थी और उस शिष्यने ध्वन्याकित कर ली थी । उस शिष्यने उसके कुछ अंश 'बुलेटिन' ( शिक्षण पत्रिका) में छापनेके लिये संपादित किये थे । इन्हें माताजीने देखा और स्वीकृति दी थी; बुलेटिनमें यह लेखमाला ''पथपर टिप्पणियां'' और ''प्रासंगिक'' शीर्षक सें छपी थीं । यह सामग्री 'श्रीमातृवाणी'के ग्यारहवें खण्डमें छप रही है ।
जब 'बुलेटिन'में इस लेखमालाका प्रकाशन शुरु: हुआ था तो उसके साथ एक टिप्पणी मी छपी थी : ''हम इस शीर्षक-तले माताजीके साथ हुई बातचीतके कुछ अंश दे रहे हैं । ये मनन या अनुभूतियां, ये अवलोकन अभी हालके ही हैं । ये रूपांतरके मार्गके सीमा-चिह्न हैं । ये केवल इसलिये नहीं चुने गये है कि ये जो काम हो रहा है उसपर प्रकाश डालते हैं - और वह काम है शरीरका योग, जिसकी सभी प्रक्रियाएं प्रतिष्ठित करनी हैं - बल्कि साथ ही, इनसे जो प्रयल करना है उसके बारेमें संकेत भी मिल सकता है । ''
माताजीकी कृतियोंका अनुवाद करना एक असंभव काम है । जो लोग मूल नहीं पढ़ सकते उनके लिये यह अनुवाद श्रीअरविद अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्रके हिंदी विभागने तैयार किया है ।
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